ऐ दोस्त ,
जान बुझकर किसी के जख्मों पे ,
जख्म देने आ गए आप ,
उस रोज़ हमने चाहा था की ,
दोस्ती की एक गुलाब आपको पेश करे ,
शायद खुदा को मंज़ूर न था ,
हमेशा अपनी खुशबू और सुन्दरता ,
लालिमाये लुटाते रहे हम
अपने चमन की ,
गुलाब दूसरों पर ,
मुझसे पूछा किसी दोस्त ने ,
हमेशा खुशबू लुटाती रही दूसरों पे ,
तुझको क्या मिला है सदा दोस्तों से ,
मैंने काहा ,
लेना देना तो व्यापार है ,
दिल से किसी पर प्यार जताकर देखो ,
इन्द्र धनुष का सांतवा रंग बिखर पड़ेगा तन मन में ,
लालिमाये लुटाते रहे हम
अपने चमन की ,
गुलाब दूसरों पर ,
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