वो ....
चेहरा हैं तेरा शबनम सा ,
फूलों की कलियों सा,
जो देखे तुझे ,
तो देखताही रह जाए,
खुदा ने तुझे उस,
खूबसूरती से नवाज़ा हैं,
शाम ढली रात आई,
दिल धड़का फिर,
तुम्हारी याद आई,
आँखों ने महेसुस किया ,
उस हवा को जो,
तुम्हे छुकर ,
हमारे पास आई,
आग ........
सब तुम्हारे भरम हैं,
ज़िंदगी दर्द के ईलवा,
कुछ भी नहीं है,
जी लिए है अब तो हम ,
वोह बदनसीब हैं,
अब हो सके तो,
भरम से निकलो तुम ,
मुद्दत थी किसी से,
मिलने की आरजू,
ख्वाहिश - ए- दीदार पर,
सब कुछ गवा दिया हैं,
किसी ने दी खबर की,
वो रात में आयेंगे,
इतना किया उजाला की
दिल तक जला दिया,
अब में एक चिंगारी के सिवा,
कुछ भी नहीं हु ,
जितना जी चाहे,
उतना खँगालो मुझे,
मैं तो एहसास की,
एक लौ हूँ,
जब भी चाहो,
बुझा लो मुझे ,
जब भी चाहो जला लो मुझे,
जिंदगी में जलते रहना ही,
मेरा काम है ,
एक लौ हूँ में आग की ।
~ ~ सदा बहार ~ ~
किलकारी की गूँज सुनाती,
ReplyDeleteपरिवारों को यही बसाती।
नारी नर की खान रही है,
जन-जन का अरमान रही है।
नारी की महिमा अनन्त है।
नारी से घर में बसन्त है।।