दीपक की लौ हूँ मैं,
मंजिल तलाश रही हूँ,
जब आतीं है आंधियां,
तब मुश्किल से,
सम्भाल लेती हू,
मैं अपने आप को,
मैं,दीपक की लौ हूँ,
मंजिल तलाश रही हूँ,
कभी तो होगा उजाला,
इसी उम्मीद में आगे,
बढ़ रही हूँ मैं,
दोस्तों को खुश,
रखने के लिए,
अपने प्रकाश को,
बढ़ावा दे रही हूँ में,
दीपक की लौ हूँ मैं,
मंजिल तलाश रही हूँ |
~ ~ सदा बहार ~ ~
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