पंख लगा के उड़ता समय ,
आभास नहीं होने देता किसी विशेष दिन का ,
खास कर जब दिन ऐसे बीत रहे हों की इससे अच्छे दिन हो ही नहीं सकते,
ऐसे में अचानक ही जादुई कायनात ,
अपने इन्द्रधनुष में छेद कर ,
किसी विशेष दिन को और सतरंगी कर देती है,
पता है आज सुबह से
हवा की सरगोशी रह रह के कुछ कहना चाह रही है ,
महकती बसंत पंख लगा के उड़ना चाहती है ,
ओस की बूंदों पे लिखा पैगाम ,
किसी के नाम करना चाहती है,
तुम्हें तो मालुम ही है इसका राज़ ,
फिर क्यों नहीं आ जातीं मेरे पहलू में,
ऐ १२ / १२ /१२/ मुझे पता है आज सब तुमसे बात करना चाहते हैं,
हो सके तो मुलाक़ात भी करना चाहते हैं,
पर मैं तुम्हें पलकों में बंद करके सो जाना चाहती हूँ,
तुम्हारे साथ सपनों की सतरंगी दुनिया में,
खो जाना चाहती हूँ,
ऐ १२ / १२ / १२ / में खो जाना चाहती हूँ तेरे संग आज रात ख्वाबों में
तुम चलोगी न मेरे साथ,
~ ~ सदा बहार ~ ~
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