सूरज का पारा 44 पर हैं ,
हमारी मिजाज़ गर्मियों से खूब चड़ा है ,
ऐसे में कौन करेगा हमारी मदद ?
पंखा , कुलेर , ए.सी. सब रद्द पड़े है !
सदा बहार के झोंकें भी गरम गरम ,
वायु के साथ खूब तड़पा रही है हमको !
बाहर सारे काम पड़े है !
सर पर सूरज गरम चढ़े है !
ऐसे में छत्री मेरी मदद करेगी !
देखूं कैसे धुप लगेगी ,
सूरज हमपे कैसे हँसेगी ?
गर्मी से न हम डरेंगे !
मिलकर सामना खूब करेंगे !
शिकंजी , लस्सी खूब पियेंगे !
अपना काम हम पूरा करेंगे !
सूरज का पारा चड़ने दो !
चाहे मस्ती खूब करने दो ,
सूरज के गर्मी से न हम डरेंगे !
डट कर सामना रोज़ करेंगे !
डर कर सूरज रो पड़ेगा !
एक दिन पारा खुद गिरेगा !
पारा 44 पर न रहेगा ।
~ ~ सदा बहार ~ ~
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