कौन जाने किस घड़ी के मौत का मेहमान हूँ में
या तेरे हाथों से बक्शी मौत का सामान हूँ में !
लाखो समझाया मैंने आपको ,
मेरे जख्मे - ए - दिलरुबा ,
तु फिर भी कहते रहा सदा ,
तेरी सूरत मेरे सूरत से अंजान
नहीं !
नहीं !
तेरी जफा को यारा,
अपनी ही जफा समझा मैंने !
अपने ही मचलते दिल का ,
तू तो बस मेरी अरमान है
हम तेरे बताएं रास्ते पर ,
कुछ दुर चलते रहे यूँ ही !
अब ना जाने क्यूँ बेमुरब्बत,
बेबफा बदनाम हुई हूँ में !
अपनी ख़ुशी भी हो गई ,
तेरे गमों मै जब शरीफ !
तब से ही तेरी जफा का ,
अध् लिखा दीवानि हूँ में !
देख ले " ज़िन्दगी तू ,
हालत - ऐ - दिल ,
देख ले सदा की ,
तेरे आईने में,खुद को देखकर मै ,
खुद से अब हैरान हूँ !
अब उम्र भर बदनाम हुई हूँ में ना जाने क्यों !
~ ~ सदा बहार ~ ~
No comments:
Post a Comment