क्या कसूर था मेरा ,
क्यूँ सजा दिया उसने ,
सोई थी आस लागाके ,
उसने क्यों जगा दिया ,
कहने को तो कुछ न था,
सोहबत नसीब थी मेरी ,
जब साथ रहने को चाहा ,
तब तनहा क्यों छोड़ दिया उसने ,
जो ढूँढती निगाहें बहार के चमन को ,
उसने क्यों उजड़ा उस चमन को ,
सूखे हुए गुलाब जैसे मुझको चिढ़ा दिया उसने ,
मुझे चाहत की समझ न थी ,
उसने मुझे समझाया क्यों न था ,
चाहत जगी थी जब तन मन में ,
मेरे किस्मत ने ही मुझे दगा दे दिया ,
मझधार में मुझे छोड़कर ,
पतझड़ का बहार दिखा दिया उसने ,
अब जाऊँगी किधर में ,
उसने धोखा दे दिया मुझे ।
~ ~ सदा बहार ~ ~
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