मेरी कल्पना है,
मेरी अनस्पर्शी होंटों को
तुम्हारे होटों का स्पर्श चाहिए ,
तुम छू लो धीरे से अपनी आँखें बंद कर के ,
जैसे की तुम मधु मक्खी हो,
हो जाओ तुम मदहोश,
मेरी होटो के स्पर्श से ,
बेला और चंपा के सुगन्ध से,
घुमते ही रहो मेरे होटो के चारों ओर,
खींचे चले आओ तुम मक़नातीस की तरह ,
सदा बहारों में लहेराकर ही सही ,
पहुँच जाओ तुम प्रफ्फुल्लित होकर ,
कर दो अपना आभास,
मेरी होंटों के स्पर्श का एहेसास,
गुण - गुणाती गुणजन से गुजर कर ,
प्रकट कर दो ये सच्चा प्यार होटो का ,
होटो को कर लो शहद की तरह अनवरत स्पर्शी ,
तुम सुध - बुध खो दो इस तरह ,
और छू लो धीरे से आकर,
मेरी अनस्पर्शी होटो को !!
और अनवरत मधुर चुम्बन तुम मुझेसे ऐसे ही ले लो ।
~ ~ सदा बहार ~ ~
Vaah Kya baat hai !!!!!!!!
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