तुम्हारे इश्क ने ही मुझे रुला दिया ,
तुम पर इस कदर मरती हूँ में ,
तुमने ही मुझे भुला दिया ,
में तो तुम्हारे यादों में ही जी लुंगी ,
दूर होकर भी हर दम में ,
तुम्हारे साथ रहूंगी धड़कन बनकर ,
मगर तुमने तो यादों में ही ज़हर मिला दिया ,
क्या कसूर था क्या ,
ज़ुल्म किया था मैंने ,
जो मेरे निः स्वार्थ प्रेम ,
और चाहत को पागल करार दे दिया तुमने ,
इस तरह पत्थर फेका तुमने जान बुझकर मुझपर ,
की में कांच के तरह टूटकर बिखर गई ,
इतना बड़ा सज़ा दे दिया तुमने ,
कोई बात नहीं कितना भी दर्द ,
और जख्म मिले मुझे ,
उफ़ न करुँगी में कभी ,
जितना मुझसे नफरत करोगे तुम उतना ही ,
मेरी चाहत का सिलसिला और बढता चला जायेगा ,
हर जख्म को अपने दिल में छुपा के ,
गीतों में पिरो लुंगी ,
ज़िन्दगी भर याद रखूंगी फिर भी ,
साथ न छोडूंगी कभी तुम्हारा ,
मरते दम तक रखूंगी में तुमको अपने दिल में बसाकर ,
तुम पर मरती हूँ में , तुमने ही मुझे भुला दिया ,
में तो तुम्हारे यादों में ही जी लुंगी ,
लेकिन तुम्हारे इश्क ने ही मुझे रुला दिया ।
~ ~ सदा बहार ~ ~
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